हे मन

July 16, 2016, 3:25 p.m.

हे मन तू न हो चिंतित,

हे मन तू न हो विचलित !

अभी समय तुझसे विपरीत,

फिर भी होगी बस तेरी जीत!

कोई मार्ग नहीं अगम्य,

दिखा साहस सुद्रिड अदम्य !

बन सकता है भाग्य विधाता तू,

संपूर्ण सृष्टि का अधिष्ठाता तू !

नियंत्रित कर तू अपनी श्वास,

अभंग रहे तेरा आत्मविश्वास !

प्राप्त कर अब इस शुद्धि को,

परिपक्व कर अपनी इस बुद्धि को !

तब प्राप्त होगी एक प्रणम्य संज्ञा,

जब विकसित होगी तेरी यह प्रज्ञां !

Categories: Poetry

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