"हृदय उद्वेग"

July 16, 2016, 3:28 p.m.

 

उठे उद्वेग कहीं हृदय में,

मैं अनभिज्ञ सचल समय में,
कभी निश्छल कभी दुर्बल;
कभी आकुल कभी व्याकुल
चलता रहूँ ….बढ़ता रहूँ…
स्वयं से द्वंद्व ….लड़ता रहूँ….
उठूं कभी उल्लास युक्त…
रहूँ गतिशील संताप मुक्त…
जोड़ता हूँ तोड़ता हूँ …
अनुभवों को बटोरता हूँ …
कभी समय मुझे टोकता है,
कभी स्वयं को झकझोरता हूँ.!

Categories: Poetry

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